जन्मदिन विशेषांक पर भाई तारू सिंह जी शहीद - को कोट कोट प्रणाम


Report manpreet singh 

Raipur chhattisgarh VISHESH :  भाई तारु सिंह जी गांव पुहले (श्री अमृतसर) के निवासी थे। भाई साहिब जी रोजाना सुबह 21 पाठ जाप साहिब के करने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते थे। वे यहां खेती बाड़ी का काम करते थे। गांव में आने जाने वाले प्रत्येक गुरुसिक्ख के रहने की व्यवस्था करना और जंगलों में रहने वाले सिंघों के लिए लंगर तैयार कर उन तक पहुंचाने की सेवा उनकी दिनचर्या थी। उन दिनों में लाहौर का गवर्नर जकरिया खां था जो सिक्खों पर बड़ा जुल्म करता था। इसने सिक्खों को खत्म करने का फैसला कर रखा था। आए दिन सिक्खों को चुन-चुन कर खत्म किया जा रहा था। सिक्खों के सिर काट कर लाने वालों को इनाम दिया जाता। इसी इनाम के लालच में किसी ने भाई तारु सिंह जी की शिकायत सरकार को कर दी। शिकायत मिलने पर जब सिपाही भाई साहिब को गिरफ्तार करने भाई साहिब के घर पर आए तो वे घर पर नहीं थे। भाई साहिब की माता जी ने उन सिपाहियों से कहा, ‘आप पहले प्रशादा छक (भोजन ग्रहण कर) लो। तब तक तारू सिंह भी आ जाएगा।’ जब सिपाहियों ने प्रशादा छका तो उन्होंने कहा कि सिक्ख इतने निरवैर हैं जो घर आए दुश्मन को भी लंगर लिये बिना नहीं जाने देते? इतने में भाई तारू सिंह जी भी घर पहुंच गये और सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 

गिरफ्तारी के बाद दरबार में पहुंचने पर भाई साहिब को सिक्खी त्यागने को कहा गया लेकिन भाई साहिब को सिक्खी जाने से भी प्यारी थी, इसलिए उन्होंने साफ मना कर दिया। इसके बाद भाई साहिब को अनेकों प्रलोभन दिये गये और मौत का डर भी दिखाया गया। लेकिन भाई साहिब अडोल (अडिग) रहे। अंत: में जकरिया खां ने चालाकी दिखाते हुए भाई साहिब से कहा कि मैंने सुना है कि आपके गुरु और गुरु के सिक्खों से अगर कुछ मांगा जाए तो वो जरूर मिलता है। मैं भी आपसे एक चीज की मांग करता हूं, मुझे आपके केश चाहिए। भाई साहब ने जवाब दिया, ‘केश दूंगा, जरूर दूंगा लेकिन काट कर नहीं, खोपड़ी सहित दूंगा।’ इसके बाद जल्लादों को बुलाया गया। जकरिया खां के हुक्म से जब जल्लाद तारू सिंह जी की खोपड़ी उतारने लगे तो अंहकार से भरा जकरिया खां बहुत खुश हुआ। भाई तारू सिंह जी की मुख से सहजे ही ये वचन निकल गये, ‘ज्यादा खुश मत हो जकरिया खां, मैं तुम्हें जूतियां मारते हुए नरकों में पहले भेजूंगा और खुद दरगाह बाद में जाऊंगा।’ भाई तारु सिंह जी की खोपरी उतार दी गई, पर गुरु के सच्चे सिक्ख का वचन सच हुआ। जकरिया खां का पेशाब रुक गया, वह बहुत दु:खी हुआ। उसके नौकर जब भाई तारू सिंह जी का जूता उनके सिर पर मारते तो उन्हें पेशाब उतरता। इस रोग से जकरिया खां की मौत पहले हुई और भाई तारू सिंह जी, जिनकी खोपरी उतार दी गई थी 22 दिन जिंदा रहे और अंत में परम परमेश्वर में लीन हो गए। छत्तीसगढ़  विशेष प्रणाम करता है एसे महान शाहिद को जिन्होने सिक्खी के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया l 

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