रिपोर्ट मनप्रीत सिंह
रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष : मध्यप्रदेश के रतलाम में विरूपाक्ष मंदिर सदियों की दास्तां समेटे बैठा है। ये धाम रहस्यों के मायावी ताने-बाने में लिपटा हुआ है। मंदिर का स्थापत्य इतना जादुई है कि एकबारगी ये किसी भूल-भुलैया से कम नहीं दिखता । मध्यप्रदेश के रतलाम में देश ही नहीं दुनिया का सबसे अनोखा शिव मंदिर है, जिस भूल भुलैया वाले शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। प्राचीन शिव मंदिरों के बारे में तो आपने कई किवदंतियां सुनी होंगी लेकिन रतलाम के बिलपांक गांव में एक शिव मंदिर ऐसा भी है जिसे भूल भुलैया वाला शिव मंदिर कहा जाता है। इसका नाम है विरूपाक्ष महादेव मंदिर। इस मंदिर की स्थापना मध्ययुग से पहले, परमार राजाओं ने की थी और भगवान भोले नाथ के ग्यारह रुद्र अवतारों में से पांचवें रूद्र अवतार के नाम पर, इस मंदिर का नाम विरूपाक्ष महादेव मंदिर रखा गया। इस मंदिर के चारों कोनों में चार मंडप भी बनाये गए हैं जिसमें भगवान गणेश, मां पार्वती और भगवान सूर्य की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। विरूपाक्ष महादेव का ये मंदिर किसी भूलभुलैया से कम नहीं है । यहां मौजूद शिलालेख के मुताबिक, ये मंदिर 64 खंबों पर टिका हुआ है। इन खंबों को चौसठ योगिनी के रूप में जाना जाता है । विरूपाक्ष मंदिर के इन खंबों के बारे में ये कहा जाता है कि इनकी गिनती कभी पूरी नहीं हो पाती ।
कहते हैं, आप चाहें कितना भी ध्यान से गिनें.कुछ ही वक्त में आप गिनती भूल जाते हैं। इसे इस अति प्राचीन मंदिर का चमत्कार कहें या फिर वास्तुयोजना का कमाल लेकिन ये सच है कि यहां सारे खंबों को गिनना बेहद मुश्किल है । दावा ये भी किया जाता है कि आज तक विरूपाक्ष मंदिर में मौजूद इन खंबों की सही गिनती कोई नहीं कर पाया है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि कई बार लोगों ने यहां स्थापित हर खंबे पर नारियल बांध कर इसे गिनने का प्रयास किया लेकिन वो भी गिनती भूल गए थे । मंदिर में 64 खंभे, गर्भगृह, सभा मंडप व चारों और चार सहायक मंदिर हैं। सभा मंडल में नृत्य करती हुईं अप्सराएं वाद्य यंत्रों के साथ हैं। मुख्य मंदिर के आसपास सहायक मंदिर भी मौजूद हैं। पूर्व सहायक मंदिर के उत्तर में हनुमानजी की ध्यानस्थ प्रतिमा, पूर्व दक्षिण में जलाधारी व शिव पिंड, पश्चिम के उत्तर में विष्णु भगवान गरुड़ पर विराजमान हैं। पश्चिम में दांयीं सूंड वाले गणेशजी की प्रतिमा है। मंदिर में शिवरात्रि पर लाखों लोग महादेव के दर्शन के लिए आते हैं। विरूपाक्ष मंदिर के गर्भगृह के नीचे तहखाना है, जिसे आज तक खोला नहीं जा सका है। कभी मंदिर परिसर में ही एक विशाल बावड़ी भी हुआ करती थी, जो अब अतिक्रमण के चलते अपना वजूद खो चुकी है। इन खूबियों के अलावा विरूपाक्ष धाम से जुड़ी इतनी किंवदंतियां और कहानियां हैं कि यहां आने वाले सैलानी जब उन्हें सुनते हैं, तो बस सुनते ही रह जाते हैं।